वार्षिक प्रतियोगिता हेतु कहानी
विधा : कहानी
शीर्षक : नशे की ओर बढ़ते कदम
यही सत्य की कहानी बनती गई जो आम नव युवकों की है ..।
पिता की आंखों में सत्या का चेहरा याद हो आया ..।
उनकी बूढ़ी आंखों में जो सत्या की तस्वीर लगी थीं उसपर जमी धूल साफ करने झुके तो लड़खड़ाते हुए गिर गए ..!
अंदर बूढ़ी आंखों से सावित्री भी पति को देखकर भावुक हो गईं ..।
आज सत्या को गए पूरे पांच वर्ष हो गए थे ..!
पेशे से इंजीनियर रहे सत्या के पिता की दो संतानों में से सत्या बड़ा था व छोटा मुकुल छोटा था ..।
सत्या ने साइंस से इंटरमिडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की तो पिता ने बाहर के इंटरेंस इक्साम (प्रदेश परीक्षा ) के लिए मेहनत करवाई लेकिन, वह सफलता ना मिल पाई ..।
शहर में उस श्रेणी में नाम ना आया ,एक छोटे शहर में दाखिले में नाम आ
गया ,वह अपना वर्ष बर्बाद नहीं करना चाहता था ,वह अपने पिता के साथ, नए भविष्य के पंख लगाकर आ पहुंचा पूना के एक शहर में ..!
वहां उसने अपने साथ के पढ़ने वालों के ऊपर प्रतिस्पर्धा भी देखी और दबाव भी ..!
नए -नए हॉस्टल में पिता उसे छोड़कर चले गए.. उसे एक कमरा चार,साथियों के बीच साझा करना ,अटपटा लगा ..।
अलग अलग परिवेश से आया रंजन उसका साथी था । रंजन शौकीन मस्तमौला ,किसी की फिकर ना करने वाला इंसान था ..!
एक बार सत्या ने कुछ ऐसा देखा कि वह सोच में पड़ गया ,उसने देखा कि वह किसी वस्तु को सूंघ रहा है ,उसके बाद वह बहुत देर तक बिस्तर से नहीं उठ पाया उसने उसको जगाने की कोशिश की व्यर्थ वह उठ ना पाया था । वह जब उठा उसने पूछा तुम जगे नहीं जगाने की कोशिश के बाद भी ,वह बोला ,"---यार एक कश ले ले जिंदगी सुकून लगती है , तू भी ले ट्राई कर ले । "
सत्या ने पूछा ,"--भाई क्या है वह ?"
रंजन ने बोला,"--पूछ मत सीधा स्वर्ग दिखाता है और तो और पढ़ने के आइडिया आते हैं ।"
सत्या अगले दिन ,रंजन के कहे अनुसार केंटीन में गया और कुछ युवकों को साथ लेकर ,उस अजीब सी वस्तु को मजे से कश खींचने लगा .. पहले दिन ,तो उसे चक्कर आ गया था लेकिन,अगले दिन वह फिर रंजन की मित्र मंडली में जुड़ता गया ।
परीक्षाएं नजदीक थीं ,इस व्यूह में वह इस कदर फंस चुका था कि , निकलना नामुमकिन ही था, पहले सेमेस्टर में अनुत्तीर्ण हो गया । पिता का संदेश आया ,"--बेटा मेरी मेहनत में कहां कमी रह गई थी ? जो ऐसा रिजल्ट आया ..! "
उसने आश्वासन दिया कि' वह फायलन में उत्तीर्ण होगा जरुर ।'
उसने झूठ बोला था,"-- पापा नया कोर्स अचानक बढ़ने से ९०% छात्र फेल हैं ।"
दबाव में पढाई ना करने के कारण,पढ़ाई से मन उचाट हो गया था, उसने नशे की राह को अपना लिया था ..। हॉस्टल से उसको और बाकि नशेड़ी मित्र मंडली को अनुशासन हीनता के कारण निकाल दिया गया,बस इतना था कॉलेज से नहीं निकाला था । पिता ने कहीं किराए पर कमरा लेकर उसे रहने के लिए रखा ,वहां पूना में भविष्य की राह रेत की तरह मुठ्ठी से फिसल रही थी ..वह बहुत पीछे छूट चुका था ।
वहां पास ही उसकी दोस्ती किसी शख्स से हो गई । उसके पास ड्रग की बड़ी खेप थी ।
एक रात उसकी मोटर साइकिल में उसके घर से आ रहा था तो ,एक बुजुर्ग को टक्कर मार दी ,वह उसी समय मर गया । मोटरसाइकिल का नम्बर ले लिया गया और उसकी धर पकड़ की गई ।
उसपर केस चलाया गया और जेल में उसने कुछ रातें भी बिताई । किसी तरह बुजुर्ग के लड़के को पैसा देकर मामला रफा दफा कर लिया गया ।
उसकी जिंदगी तार- तार बिखर चुकी थी और वह मुख्य धारा में नहीं आना चाहता था ,उसे पिता ने कोशिशों के बात रिहेब्लिटेशन सेंटर भेजा वहां से भी वह भाग आया..।
घर में घुसकर मां पिता से झगड़े किया करता ,नशे के लिए पैसे मांगता था । पिता उसे शिक्षा के लिए बाहर भेजने के लिए पछ्तावा कर रहे थे ..!
समय निकला जा रहा था छोटा भाई मुकुल को पिता आगे पढ़ाना चाहते थे , लेकिन बाहर भेजने से डरते थे व उसे खोना नहीं चाहते थे ..।
पिता की चिंता देख एक दिन मुकुल ने पिता को समझाया कि उसकी चिंता ना करें वह ऐसा अपने जीवन के साथ होने नहीं देगा ।
समय बीत रहा था छोटा भाई मुकुल उच्च शिक्षा के अध्ययन हेतु विदेश चला गया । माता -पिता के पास सत्या ही रह गया था । उसको माता -पिता की चिंता नहीं थी ..!
एक बार अपने नशे की लत में मोबाइल तक बेच दिया । उसपर किसी का कोई असर नहीं होता था ।
पिता ने जेब खर्च देना बंद कर दिया तो मित्रो से उधार मांगने लगा । एक दिन ऐसा आया मित्रों ने भी जब मना कर दिया तो ।
गुस्से डिस्ट्रिक सेंटर की दसवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी । नशे के बढ़ते कदम ने एक जिंदगी लील ली ।
माता - पिता उस दिन को कोस रहे थे जिस दिन उन्होंने अपने बेटे को बाहर पढ़ने भेजा था । चरस ,गांजा व भांग जैसे नशे के आदी युवक भविष्य की गर्त में दफन हो जाते हैं ,उनके अपने भी उनको वहां से निकालने में अक्षम्य हो जाते हैं । यह जरूरी भी नहीं कि दबाव में ही पीते , कुछ अपने शौक को यह बदरंग तस्वीरें से उकेर देते हैं …!
नशे की पीड़ा का अनुभव भले ही उसे करने वाले ने ना किया हो लेकिन , उसके खून के रिश्तों ने इसका दर्द जरुर पहचाना है ।
हर युवक को जागरूक करना होगा देश व समाज के प्रति उसका उत्तरदायित्व को उसे सिखाना होगा । कानून बनने से कुछ नहीं होगा । नैतिक मूल्यों का उत्थान करना होगा ..।
भारत के शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था ऐसी है कि , असफलता में नवयुवक हताशा में घिर जाते हैं ...। बड़ी -बड़ी किताबों और ग्रंथों के बोझ तले भविष्य को देख युवक उसमें फंस कर रह जाता है और प्रतिस्पर्धा के इस युग में अत्यंत दबाव के बीच अपने को फंसा पाता है ..।
सरकारी शिक्षा की कुव्यवस्था जग जाहिर ही है जब ,ऐसे लोगों को आगे बढ़ाया जाता है जो योग्य ना होते हुए भी चयनित होते हैं । उसको राजनीति का जामा पहना कर शिक्षा के ऊपर थोपा जाता है । जिसका दबाव हर युवा वर्ग करता है ..!
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#लेखनी कहानी
#लेखनी कहानी का सफर
सुनंदा ☺️
𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
04-Mar-2022 02:27 PM
किसी एक के नशा करने से उसके परिजनों तक पर क्या बीतता है, बहुत ही अच्छी तरह से बताया है आपकी इस स्टोरी ने।👌👌
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Sunanda Aswal
04-Mar-2022 02:58 PM
Thanks so much 🙏🤗🌺
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Seema Priyadarshini sahay
03-Mar-2022 04:54 PM
बहुत ही सटीक
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Sunanda Aswal
04-Mar-2022 02:59 PM
Thanks dear 💕
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